जहां साइबर हैकिंग पूरी तरह सरकारी

मगर, एक देश ऐसा है, जहां की साइबर हैकिंग सेना पूरी तरह से सरकारी है. इस देश का नाम है उत्तर कोरिया.
उत्तर कोरिया में हैकर्स की सेना को चलाती है वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी आरजीबी. उत्तर कोरिया में 13-14 साल की उम्र से ही बच्चों को हैकिंग के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगती है. स्कूलों से ही प्रतिभाशाली बच्चों को छांटकर हैकिंग की ख़ुफ़िया सेना में दाख़िल कर दिया जाता है.
गणित और इंजीनियरिंग में तेज़ छात्रों को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग दी जाती है. फिर या तो वो हैकर बनते हैं या सॉफ्टवेयर इंजीनियर. संसाधनों की कमी की वजह से उत्तर कोरिया में बच्चे पहले काग़ज़ के की-बोर्ड पर अभ्यास करते हैं. जो तेज़-तर्रार होते हैं, बाद में उन्हें कंप्यूटर मुहैया कराया जाता है.
उत्तर कोरिया अपने यहां के बहुत से छात्रों को चीन या दूसरे एशियाई देशों में आईटी की पढ़ाई करने के लिए भेजता है, ताकि वो साइबर दुनिया को अच्छे से समझ सकें और देश के काम आ सकें.
इनमें से कई छात्र पढ़ाई पूरी करके चीन या दूसरे देशों में ही रुक जाते हैं और वहीं से अपने देश के लिए हैकिंग का काम करते हैं. उनका मक़सद कमाई करके अपने देश को पैसे भेजना होता है.
ये उत्तर कोरियाई हैकर्स 80 हज़ार से एक लाख डॉलर लेकर फ्रीलांस हैकिंग करते हैं, ताकि अपने देश के लिए पैसे कमा सकें.
जानकार मानते हैं कि क़रीब 2-3 हज़ार उत्तर कोरिया हैकर फ्रीलांस का काम करते हैं, इनके निशाने पर क्रेडिट कार्ड, बैंक के खाते हुआ करते हैं, ताकि आसानी से कमाई हो सके.
उत्तर कोरिया के हैकर्स ने दुनिया के कई बैकों पर बड़े साइबर हमले करके करोड़ों की रक़म उड़ाई है. इनके निशाने पर लैटिन अमरीकी देश इक्वाडोर से लेकर पड़ोस के देश तक रहे हैं.
अब जब साइबर क्राइम बढ़ रहे हैं, तो ज़ाहिर है तमाम देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए पुलिस बल भी तैयार किए हैं.
ऐसी ही साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैं, माया होरोवित्ज़. माया साइबर हमले करने वाले हैकर्स को तलाशती और पकड़ती हैं. हैकिंग के केस सुलझाती हैं. वो साइबर सिक्योरिटी कंपनी चेक प्वाइंट के लिए काम करती हैं.सराइल की रहने वाली माया बताती हैं कि आमतौर पर आईटी प्रोफ़ेशनल्स ही साइबर हमलों के पीछे होते हैं. ये तीन या चार लोगों की टीम के तौर पर काम करते हैं. एक टारगेट की तलाश करता है, तो दूसरा सेंध लगाता है और तीसरा खातों से डेटा या पैसों की चोरी करता है.
माया बताती हैं कि कई बार हैकर्स 5 से 7 लोगों के ग्रुप में काम करते हैं, जो एक-दूसरे को कोड नेम से जानते हैं. किसी को दूसरे का असली नाम नहीं पता होता.
सवाल ये उठता है कि जब वो एक-दूसरे को जानते नहीं, तो फिर कैसे संपर्क करते हैं ?
माया बताती हैं कि हैकर्स अक्सर टेलीग्राम नाम के सोशल मैसेजिंग ऐप के ज़रिए बात करते हैं. ये एनक्रिप्टेड मैसेज सर्विस है, जो आतंकी संगठनों के बीच बहुत लोकप्रिय है.
साइबर अपराधी अक्सर अपने हुनर या कोड को बेचकर पैसे कमाते हैं. वो बैंक या किसी वित्तीय संस्थान के कर्मचारी से मेल करके हैकिंग कर सकते हैं, या फिर कुछ वक़्त के लिए अपना हैकिंग कोड किसी और को देकर पैसे कमा सकते हैं.
आज की तारीख़ में साइबर अपराध या हैकिंग एक बड़ा कारोबार बन गया है.
साइबर दुनिया के अपराधी इन दिनों वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन को निशाना बना रहे हैं. वो दूसरों के खातों की वर्चुअल करेंसी को हैकिंग के ज़रिए अपने खातों में ट्रांसफ़र करके पैसे कमा रहे हैं. या यूं कहें कि दूसरों के वर्चुअल खातों में डाका डाल रहे हैं.
माया होरोवित्ज़ कहती हैं कि साइबर अपराधी हमारे कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन पर हमले करके हमारी प्रॉसेसिंग की ताक़त को छीन लेते हैं. कई बार हमें इसका पता भी नहीं चलता. बस हमारे लैपटॉप या फ़ोन ज़्यादा गर्म होने लगते हैं. बिजली का बिल बढ़ जाता है.
माया इसकी मिसाल के तौर पर आइसलैंड नाम के एक छोटे से देश की मिसाल देती हैं. वहां के लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए कम बिजली इस्तेमाल करते हैं. आइसलैंड में ज़्यादा बिजली ऑनलाइन डेटा प्रॉसेसिंग यानी क्रिप्टोमाइनिंग में ख़र्च हो रही है.
दिक़्क़त ये है कि बिजली एक सीमा तक ही उपलब्ध है, वहीं वर्चुअल दुनिया अपार है. तो, अगर आइसलैंड में इसी दर से क्रिप्टोमाइनिंग होती रही, तो उनकी बाक़ी ज़रूरतों के लिए एक दिन बिजली बचेगी ही नहीं.
हैकर्स के इन हमलों से उस्ताद देश भी परेशान हैं. जैसे कि उत्तरी कोरिया. उसने एलान किया है कि जल्द ही वो क्रिप्टोमाइनिंग की कांफ्रेंस आयोजित करेगा.
आज साइबर अपराधियों का साम्राज्य इतना फैल गया है कि ये धंधा अरबों-ख़रबों डॉलर का हो गया है. हैकर्स आज सरकारों के लिए भी काम कर रहे हैं और भाड़े पर भी. ये बैंकों और सरकारी वेबसाइटों से लेकर निजी कंप्यूटरों और मोबाइल तक को निशाना बना रहे हैं.
इन्हें कई देशों में सरकारें ट्रेनिंग दे रही हैं, ताकि दुश्मन देशों को निशाना बना सकें. तो, ईरान जैसे कई देश इन्हें भाड़े पर रखकर विरोध की आवाज़ दबा रहे हैं. साइबर अंडरवर्ल्ड आज ख़ूब फल-फूल रहा है.

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